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अ॒स्मिन्प॒दे प॑र॒मे त॑स्थि॒वांस॑मध्व॒स्मभि॑र्वि॒श्वहा॑ दीदि॒वांस॑म्। आपो॒ नप्त्रे॑ घृ॒तमन्नं॒ वह॑न्तीः स्व॒यमत्कैः॒ परि॑ दीयन्ति य॒ह्वीः॥

English Transliteration

asmin pade parame tasthivāṁsam adhvasmabhir viśvahā dīdivāṁsam | āpo naptre ghṛtam annaṁ vahantīḥ svayam atkaiḥ pari dīyanti yahvīḥ ||

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Pad Path

अ॒स्मिन्। प॒दे। प॒र॒मे। त॒स्थि॒ऽवांस॑म्। अ॒ध्व॒स्मऽभिः॑। वि॒श्वहा॑। दीदि॒ऽवांस॑म्। आपः॑। नप्त्रे॑। घृ॒तम्। अन्न॑म्। वह॑न्तीः। स्व॒यम्। अत्कैः॑। परि॑। दी॒य॒न्ति॒। य॒ह्वीः॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:35» Mantra:14 | Ashtak:2» Adhyay:7» Varga:24» Mantra:4 | Mandal:2» Anuvak:4» Mantra:14


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जो (आपः) प्राण (अत्कैः) भोगने योग्य (अध्वस्मभिः) न गिरनेवाले गुण कर्म स्वभावों के साथ (अस्मिन्) इस (परमे) सबों से अति उत्तम (पदे) प्राप्त होने योग्य व्यवहार में (तस्थिवांसम्) स्थित (विश्वहा) सब दिन (दीदिवांसम्) देदीप्यमान ईश्वर को (वहन्तीः) प्राप्त करती हुई (स्वयम्) आप (यह्वीः) महान् भी (परि,दीयन्ति) नष्ट होती हैं उनके द्वारा (नप्त्रे) पौत्र के लिये (घृतम्) जल और (अन्नम्) अन्न को तुम लोग प्राप्त होओ ॥१४॥
Connotation: - जो मनुष्य प्रतिदिन सच्चिदानन्दस्वरूप अपने में स्थित ईश्वर का ध्यान करते हैं, वे परमपद ब्रह्म को प्राप्त होकर आनन्द को प्राप्त होते हैं और उत्तम सुख प्राप्ति से शीघ्र क्षीण नहीं होते ॥१४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह।

Anvay:

हे मनुष्या य आपोऽत्कैरध्वस्मभिस्सहास्मिन्परमे पदे तस्थिवांसं विश्वहा दीदिवांसं वहन्तीः स्वयं यह्वीः परिदीयन्ति तद्द्वारा नप्त्रे घृतमन्नं यूयम्प्राप्नुत ॥१४॥

Word-Meaning: - (अस्मिन्) (पदे) प्राप्तव्ये (परमे) सर्वोत्कृष्टे (तस्थिवांसम्) स्थितम् (अध्वस्मभिः) अपतनशीलैर्गुणकर्मस्वभावैः (विश्वहा) विश्वानि च तान्यहानि च विश्वहानि। अत्र छान्दसो वर्णलोप इत्युत्तरपदादिलोपः। (दीदिवांसम्) देदीप्यमानम् (आपः) प्राणाः (नप्त्रे) पौत्राय (घृतम्) जलम् (अन्नम्) (वहन्तीः) प्रापयन्त्यः (स्वयम्) (अत्कैः) अत्तुमर्हैः (परि) (दीयन्ति) क्षयन्ति। व्यत्ययेनात्र परस्मैपदम् (यह्वीः) महत्यः ॥१४॥
Connotation: - ये मनुष्याः प्रतिदिनं सच्चिदानन्दस्वरूपं स्वस्मिन् स्थितमीशं ध्यायन्ति ते परमं पदं ब्रह्म प्राप्यानन्दन्ति न सद्यः क्षीणलोका भवन्ति ॥१४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जी माणसे प्रत्येक दिवशी स्वतःमध्ये स्थित असलेल्या सच्चिदानंदस्वरूप ईश्वराचे ध्यान करतात ते परमपद ब्रह्माला प्राप्त करून आनंद प्राप्त करतात व उत्तम सुख मिळाल्यामुळे लगेच क्षीण होत नाहीत. ॥ १४ ॥